पत्रकारों पर आपराधिक मामला दर्ज नहीं होगा सिर्फ सरकार या मुख्यमंत्री की आलोचना करने पर : सुप्रीम कोर्ट - statementtodaynews.com

पत्रकारों पर आपराधिक मामला दर्ज नहीं होगा सिर्फ सरकार या मुख्यमंत्री की आलोचना करने पर : सुप्रीम कोर्ट

Statement Today News

अब्दुल बासिद खान / ब्यूरो मुख्यालय : नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा है कि केवल सरकार या मुख्यमंत्री की आलोचना करने पर किसी पत्रकार के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया जा सकता।

यह आदेश वरिष्ठ पत्रकार अभिषेक उपाध्याय के मामले में दिया गया, जिनके खिलाफ सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने वाली एक ऑनलाइन रिपोर्ट को लेकर एफआईआर दर्ज की गई थी।

अदालत ने यूपी पुलिस को चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने का निर्देश देते हुए उपाध्याय की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा —लोकतांत्रिक व्यवस्था में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को अपराध नहीं कहा जा सकता। संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) हर नागरिक को बोलने और लिखने का अधिकार देता है।”

दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार अभिषेक उपाध्याय ने प्रदेश में प्रशासनिक पदों पर जाति आधारित तैनातियों को लेकर एक लेख लिखा था। शिकायतकर्ता ने इसे “भ्रामक” और “सरकार विरोधी” बताकर मुकदमा दर्ज कराया। एफआईआर में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की कई धाराएँ और आईटी एक्ट की धारा 66 लगाई गई थीं।

पत्रकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए कहा कि सरकार उन्हें डराने के लिए लगातार एफआईआर दर्ज करा रही है और यहां तक कि एसटीएफ तक को उनके पीछे लगाया गया।

न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने कहा कि राज्य या पुलिस को किसी पत्रकार के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले यह देखना होगा कि आरोपों का कानूनी आधार है या नहीं। अदालत ने कहा कि आलोचना लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा है, अपराध नहीं।

कोर्ट ने यह भी कहा कि लोकतांत्रिक देशों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाता है और सरकार की आलोचना को राजद्रोह या आपराधिक कृत्य नहीं कहा जा सकता। इस आदेश से देशभर के पत्रकारों को राहत मिली है। पिछले कुछ वर्षों में कई मामलों में सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने वाले पत्रकारों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए थे।

न्यूज़लॉन्ड्री के आंकड़ों के अनुसार, 2012 से 2022 के बीच 423 पत्रकारों पर आपराधिक मामले दर्ज हुए। वहीं, कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (CPJ) की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में आज भी कई पत्रकार मुकदमों का सामना कर रहे हैं।

अभिषेक उपाध्याय के मामले में जिस तरह से एक के बाद एक एफआईआर दर्ज कराई गई और एसटीएफ तक को लगाया गया, उसने राज्य सरकार की नीयत पर सवाल खड़े कर दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब यह जिम्मेदारी यूपी सरकार की है कि वह उन अधिकारियों पर कार्रवाई करे, जिन्होंने इस तरह की दमनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की।

अदालत ने यूपी सरकार से चार हफ्ते में जवाब मांगा है। अगली सुनवाई नवंबर 2024 में होगी। तब तक अभिषेक उपाध्याय को गिरफ्तारी से पूर्ण संरक्षण प्राप्त रहेगा। यह फैसला प्रेस की स्वतंत्रता के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा- “सरकार की आलोचना अपराध नहीं, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा है।”

editor

    Related Articles

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *